जब साली और जीजा की चाहत ने छत पर जंग जीता - एक मनोरंजक रोमांस
प्रीति और राहुल की गर्मियों की वो रात जब छत पर चाँदनी ने देखा दो दिलों का मिलन। पढ़िए कैसे एक स्पर्श ने बदल दी सारी परिभाषाएं। #DesiRomance"
📖 कहानी का अंश (Part 2)
(Part 1 का लिंक: जब साली आई छुट्टियों में...)
"उस रात छत पर हवा थोड़ी ठंडी थी, पर दिल की धड़कनें तेज़..."
प्रीति बाल सुखा रही थी, टॉवेल में लिपटी — जैसे चाँदनी के बीच कोई कविता सांस ले रही हो। उसकी मुस्कान में अब बचपना नहीं, एक परिपक्व शरारत थी।वो साली अब सिर्फ घर की मेहमान नहीं रही — वो उसकी हर धड़कन में बस गई थी।
उस रात छत पर हवा थोड़ी ठंडी थी, पर दिल की धड़कनें तेज़। प्रीति बाल सुखा रही थी, टॉवेल में लिपटी — जैसे चाँदनी के बीच कोई कविता सांस ले रही हो। उसकी मुस्कान में अब बचपना नहीं, एक परिपक्व शरारत थी।
“बहुत चुप हैं आज जीजा जी…” उसने कहा, उसकी आवाज़ में धीमा सा नशा था।
राहुल ने जवाब दिया, “चाँदनी में शब्द पिघल जाते हैं…”
“या फिर दिल की बातें आँखों में उतर आती हैं?”
वो पास आ गई, इतनी पास कि उसकी सांसें राहुल के गाल को छूने लगीं। पलभर की चुप्पी में बहुत कुछ कह दिया गया।
“क्या सोच रहे हो?” उसने पूछा।
“कुछ नहीं…” राहुल की आवाज़ भारी थी, और दिल बेचैन।
“तो आँखें क्यों काँप रही हैं?” उसकी उँगलियाँ राहुल की उँगलियों से टकराईं। फिर जैसे उन्होंने खुद-ब-खुद एक-दूसरे को थाम लिया।
“आपके हाथ गर्म हैं…”
“शायद दिल भी…” राहुल ने कहा।
प्रीति ने धीरे से अपनी आँखें बंद कीं — और वो खामोशी एक लंबा आलिंगन बन गई। चाँदनी गवाह बनी उस पल की, जब दिल ने पहली बार इज़हार की हिम्मत की।
राहुल ने महसूस किया — वो अब सिर्फ उसकी बीवी की बहन नहीं रही। कुछ था जो रगों में उतर चुका था।
प्रीति धीरे-धीरे उसके करीब आई — इतनी कि उनके घुटने एक-दूसरे को छूने लगे। उसका चेहरा राहुल के चेहरे के सामने था, उसकी आँखों में एक मासूम चाहत और छुपा हुआ साहस।
“अगर मैं कुछ कहूं… तो क्या तुम दूर जाओगी?” राहुल ने पूछा।
“शायद नहीं,” प्रीति ने हल्के से कहा, “क्योंकि जो तुम सोच रहे हो… वही मैं भी महसूस कर रही हूं।”
उनके बीच की दूरी अब खत्म हो चुकी थी।
“उसकी उंगलियाँ मेरे जिस्म पर गीत लिख रही थीं…” “वो मेरी पीठ पर गर्म हवाओं सा बह रहा था…” “उसके होंठों की मखमली तपिश अब मेरी साँसों में बस गई थी…”
प्रीति का सिर राहुल के कंधे पर था। उसकी साँसें अब उसकी गर्दन को छू रही थीं।
“अगर ये गलत है…” राहुल ने कहा। “तो फिर सही क्या है?” प्रीति ने पूछा।
उसके होंठ राहुल की गर्दन के पास टिके — और एक कंपन पूरे शरीर में दौड़ गया। वो पहला स्पर्श था, जिसमें इज़हार भी था और इकरार भी।
उनकी उंगलियाँ अब आपस में उलझ चुकी थीं। प्रीति ने उसकी उंगली को अपने होंठों से छुआ…
“हर स्पर्श में एक नई कहानी थी…” “उसने मेरी उंगलियाँ पकड़कर मुझे खुद तक खींच लिया…”
धीरे-धीरे, उनके बीच की खामोशी अब साँसों की सरगम में बदल गई थी।
“हम सिर्फ शरीर से नहीं, आत्मा से जुड़ रहे थे…” “वो मुझे अंदर तक महसूस कर रहा था, और मैं उसे जी रही थी…”
राहुल ने उसकी पीठ पर अपनी हथेलियाँ रखीं — एक गर्म लहर दोनों के बीच बह निकली।
उनके होंठ अब करीब थे… फिर वही पल आया — जब किसी एक ने पहल की… या शायद दोनों ने एक साथ।
एक लंबा चुंबन… जिसमें कोई जल्दबाज़ी नहीं, कोई हड़बड़ी नहीं। बस एक स्वीकार था।
…और फिर सब कुछ थम गया… जैसे वक़्त खुद उनकी सांसों के हिसाब से चलने लगा हो।
लेकिन उस पल की शुरुआत यहीं नहीं थमी थी — वो तो अब शुरू हो रही थी।
“उसकी उंगलियाँ अब मेरी कमर से नीचे उतर रही थीं… और मेरी रूह भीतर तक सिहरने लगी थी।” “मेरे पैर जैसे खुद-ब-खुद खुलते चले गए… उसकी सांसें मेरे सबसे नर्म हिस्से पर ठहर गईं।”
उसके स्पर्श में कोई हड़बड़ी नहीं थी — सिर्फ समझदारी और चाहत थी। वो जानता था, कहां रुकना है और कहां बह जाना है।
“वो इतनी करीब था कि मेरी हर परत पिघलने लगी थी… धीरे-धीरे… अंदर तक।”
“मेरे भीतर की गर्मी अब खुद उसकी तलाश कर रही थी… और वो, जैसे मेरा हिस्सा बन चुका था।”
उसकी उंगलियाँ मेरी जाँघों की ओर सरक रही थीं… और मैं अब खुद को रोक नहीं पा रही थी। एक मीठा डर, और उससे बड़ी एक अजीब सी तृप्ति मेरे भीतर फैल रही थी।
“हम एक-दूसरे में समा गए थे — धीरे, गहराई से, पूरी तृप्ति के साथ।”
उसकी साँसें मेरे कान के पास आईं और उसने फुसफुसाया, “तू अब सिर्फ मेरी है…”
“उसकी साँसें जब मेरे सीने के करीब आईं… तो जैसे रूह तक सिहर गई।” “उसने मेरे कांधे से दुपट्टा सरका दिया, और मेरी सांसें वहीं अटक गईं।”
“मेरे सीने की धड़कनें अब उसकी उंगलियों के इशारों पर चलने लगी थीं।” “वो नज़रों से नहीं… मेरे जिस्म की नमी से मेरी तड़प पढ़ रहा था।”
“उसके होंठ मेरे कॉलरबोन पर रुक गए… और फिर जैसे वक्त ठहर गया।”
“वो मेरे अंतस तक उतर चुका था — बिना किसी शब्द, बिना किसी अनुमति… बस पूरे अधिकार से।”
“मेरे भीतर कुछ खुल रहा था… जैसे किसी बंद कमरे की खिड़की पहली बार खुली हो।”
“हर दूसरी सांस के साथ हम और भी गहरे समा रहे थे — जैसे एक नदी समंदर में विलीन हो जाती है।”
“उस रात हमने एक-दूसरे को पढ़ा नहीं… जिया था।”
“कमरे में अब सिर्फ़ हमारी रुक-रुक कर आती सांसों की आवाज़ थी… और उस संगीत का कोई अंत नहीं था।”
“हर लहर जैसे हमारे बीच बहती रही… और हम उसी में खोते चले गए।”
“बिस्तर की सिलवटों ने हमारी कहानी चुपचाप सुन ली थी — हर धड़कन एक गवाही थी।”
“उसके होंठों की तपिश मेरे भीतर गूंज रही थी… और मेरा अंतःस्थल उसकी हर धड़कन को थाम रहा था।”
…और वहीं कहीं, हमारे बीच की पहली रात… एक अधूरी पूरी कहानी बन गई।
📖 Part 3: जब उसकी साँसों ने मेरे जिस्म को छू लिया… और सब कुछ बदल गया — जल्द प्रकाशित
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