PG वाली लड़की और किरायेदार की पहली रात – भाग 1
एक खाली पीजी का कमरा, लड़की की आँखों में छुपी तन्हाई, और एक किरायेदार की कहानी जो मोहब्बत से वासना तक पहुँचती है – पढ़ें भाग 1
PG वाली लड़की – जब कमरे का दरवाज़ा बंद हुआ (भाग 1)
(Narrated by: किरायेदार खुद)
दिल्ली की गर्मियों में पीजी मिलना किसी जंग जीतने से कम नहीं। मैं भी नई नौकरी की वजह से हसरत लिए एक पीजी में शिफ्ट हुआ। छोटा सा कमरा, दीवार पर उखड़ा सा पेंट, और सामने की खिड़की से दिखती एक सफेद सलवार में लिपटी लड़की, जो हर शाम बालकनी में अकेली खड़ी दिखती।
पहली ही नजर में दिल फिसल गया।
नाम था उसका – अंशिका।
चेहरे पर नर्मी, आँखों में कुछ अधूरी सी प्यास, और चाल में एक अजीब सादगी। PG की मालकिन की बेटी थी वो – पर पूरे घर में अकेली ही दिखती थी। एक शाम जब मैं पानी लेने नीचे आया, तो वो रसोई में मिली। धीमी आवाज़ में बोली – “अगर कुछ भी चाहिए हो तो सीधे मुझे बता देना, मम्मी बाहर गई हैं।”
उसकी आवाज़ मानो रूह को छू गई।
मैंने बस सिर हिलाया और मुस्कुरा कर चला गया।
☕ पहला टकराव – कॉफ़ी और करीबियाँ
अगले दिन शाम को मैं थक कर आया तो देखा कमरे के बाहर ट्रे रखी थी – दो कप कॉफी के साथ। चुपचाप दरवाज़ा खटखटाया – सामने वही थी।
“गर्म है… पी लीजिए,” – कहते हुए उसने नज़रें चुराईं।
उसकी वो शर्मीली मुस्कान और खुलते बाल, मुझे खींच ले गए एक ऐसे ख्याल में जहाँ सिर्फ मैं और वो थे।
हमने पहली बार बालकनी में बैठकर कॉफी पी। बातों का सिलसिला स्कूल से शुरू होकर 'तन्हाई' तक पहुँच गया। पता चला – उसके पापा गुजर चुके हैं, माँ दिनभर बाहर रहती हैं, और वो इस पूरे PG में सिर्फ अकेली रहती है।
वो मेरी ओर देखती तो उसकी आँखों में कुछ टूटता हुआ सा दिखता…
💬 Flirt शुरू – आँखे और इशारे
रातों को मैं खिड़की से झांकता, और उसे बाल सुखाते देखता।
उसकी कमर तक आती लहराती ज़ुल्फें, और ढीले से पायजामे के नीचे दिखता उसका अस्तित्व…
…मानो खुदा ने उसे अकेलेपन की आग से नहलाया हो।
एक दिन मैं उसके कमरे के सामने से गुज़रा, दरवाज़ा अधखुला था, और अंदर से आ रही थी उसकी धीमी हँसी – शायद किसी पुराने गाने पर थिरक रही थी। उसकी पीठ मेरी ओर थी, और उसकी सलवार थोड़ी सी नीचे सरकी हुई थी… गोरी कमर पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं।
मैं पल भर को रुका, पर फिर खुद को रोक लिया।
📦 एक रात – जब सब बदल गया
शनिवार की रात थी। PG खाली था। बाकी लड़कियाँ छुट्टी पर थीं।
मैं अपनी किताबों में उलझा था कि दरवाज़ा खटका।
वही थी – अंशिका।
कांपती आवाज़ में बोली: “काफी अकेलापन लग रहा है… एक कप कॉफी मिल सकती है?”
मैंने उसे अंदर बुला लिया।
कॉफी बनाते हुए हम दोनों खामोश थे।
कमरे का पंखा धीमे-धीमे घूम रहा था, उसकी साँसें तेज़ थीं, और मेरी धड़कनें अनियंत्रित।
उसने अचानक पूछा – “तुम्हारी खिड़की से मुझे देखना अच्छा लगता है?”
मैं चौंका।
कुछ बोल नहीं पाया।
उसने आगे बढ़कर कॉफी का कप मेरे हाथ से लिया, और मेरी आँखों में देखती रही।
😍 स्पर्श की पहली लहरें
"तुम्हें मैं कैसी लगती हूँ?" – उसके इस सवाल ने जैसे कमरे की हवा को चीर दिया।
मैंने धीरे से कहा – “तुम मेरी हर कल्पना से ज़्यादा खूबसूरत हो…”
उसका हाथ मेरे कंधे पर रखा… और मानो मेरी रगों में लहरें दौड़ने लगीं।
हम चुपचाप बैठे रहे – उसके घुटनों पर मेरा हाथ था, और उसकी साँसें मेरी गर्दन के पास गूँज रही थीं।
❓ भाग 1 का अंत – एक झोंका, एक इंतज़ार
कमरे की बत्ती बुझ गई थी।
सिर्फ मोबाइल की रौशनी में उसके होठों की लाली चमक रही थी।
वो पास आई… मेरे कान में फुसफुसाई – "मैं तैयार हूँ, अगर तुम हो..."
और फिर…
दरवाज़ा बंद हुआ – पूरा।
📌 यहाँ समाप्त होता है भाग 1…
👉 पढ़ें भाग 2: “PG वाली लड़की – जब रूह तक लहरें गईं (भाग 2)”
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